Chapter 14 पहलवान की ढोलक Solutions
Question - 11 : - ढोलक की थाप मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति मरती रहती थी-कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीचिए।
Answer - 11 : -
कला का जीवन से प्रत्यक्ष संबंध है। संगीत व काव्य की श्रेष्ठता तो जग-प्रसिद्ध है। ये दोनों निराश मनों में उत्साह का संचार करते हैं। युद्ध में गीत व संगीत से जवानों में मर मिटने का जोश उत्पन्न हो जाता है। हास्य-व्यंग्य की कविताएँ सुनकर भ्रष्टाचारी तिलमिलाकर रह जाते हैं। इसी तरह पेंटिंग, नृत्य, अभिनय-ये तभी सफलता व प्रसिद्ध को प्राप्त करते हैं जब वे जीवन से जुड़ते हैं। संगीत पर हजारों व्यक्तियों को एक साथ झूमते देखा जा सकता है।
Question - 12 : - चचा करें- कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं हैं।
Answer - 12 : -
कला अपने बूते पर जीवित रहती है। कोई इसे मिटाना चाहे तो भी यह जीवित रहती है। फिर चाहे इसका रूप ही क्यों न बदल जाए। व्यवस्थाएँ कला को विकासशील बना सकती है लेकिन कला उन पर आश्रित बिलकुल नहीं। कई बार तो कला ही व्यवस्था को सुव्यवस्थित कर देती है। कला एक अमर और शाश्वत सत्य है जिसे निराश्रित नहीं किया जा सकता।
Question - 13 : - हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ हा नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए-
Answer - 13 : -
- चिकित्सा
- न्यायालय
- क्रिकेट
- या अपनों पसंद का कांडों क्षेत्र
उत्तर –
- चिकित्सा क्षेत्र के पाँच शब्द – डॉक्टर, नर्स, ऑपरेशन थियेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर, बेड, प्राईवेट रूम, वार्ड ब्वाय।
- क्रिकेट क्षेत्र के पाँच शब्द – कमेंट्री, अंपायर, रन आऊट, इन स्विंग, क्लीन बोल्ड, वाइड बॉल, नो बॉल।
- न्यायालय क्षेत्र के पाँच शब्द – अर्दली, रजिस्ट्री, जुर्म, कातिल, सुराग, माई लार्ड, वकील, क्लर्क।
- कंप्यूटर क्षेत्र के पाँच शब्द – माउस, आऊट सोर्सिंग, चैटिंग, इंटरनेट, यू.पी.एस, प्रिंटर, विंडोज।
Question - 14 : - पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते है। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता की बढावा देता है
Answer - 14 : -
बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता हैं। यदि उन शब्दों, व्यक्यंशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
फिर बाज की तरह उस पर टुट पडा।
राजा साहब की स्नेह-दूष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिया।
पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों की पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
इन विशिष्ट भाषा- प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर –
रामपुर में दंगल हो रहा था। वहाँ ‘शेर का बच्चा’ दूसरों को ललकार रहा था। तभी मानसिंह ने चुनौती दी। यह सुनकर शेर का बच्चा उस पर बाज की तरह टूट पड़ा। मानसिंह ने दाँव काटा तथा उसे जमीन सुंघा दी। राजा साहब उसकी बहादुरी पर प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे दरबार में रख लिया। राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्ध में चार चाँद लगा दिया। मानसिंह ने सारे राज्य में नाम कमाया किंतु पहलवान की स्त्री दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई।
Question - 15 : - जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है, वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
Answer - 15 : -
समानता
दोनों में खिलाड़ियों का परिचय दिया जाता है।
दोनों में हार-जीत बताई जाती है।
दोनों में खेल की स्थिति का वर्णन किया जाता है।
असमानता
पाठ के आधार पर यही कहा जा सकता है कि कहानीकार ने क्रिकेट की तरह ही कुश्ती की भी कमेंट्री की है। इसीलिए प्रारंभिक रूप से इन दोनों खेलों की कमेंट्री में कोई अंतर नहीं दिखाई पड़ता। क्रिकेट की तरह ही कुश्ती के खेल में भी अंपायर रूपी रेफरी मैच (कुश्ती) को आरंभ करता है। यदि कोई पहलवान रूपी क्रिकेटर पंक्ति से बाहर जाता है तो उसे फाउल रूपी वाईडबॉल की तरह बाहर का इशारा किया जाता है। किंतु यदि दोनों खेलों के नियमों को देखें तो इनमें अंतर भी दिखाई देता है। क्रिकेट में वाइडबॉल के अलावा नो बॉल, स्टंपड, क्लीन बोल्ड आदि होते हैं जबकि कुश्ती में ऐसा नहीं है। क्रिकेट में ग्यारह खिलाड़ी खेलते हैं जबकि कुश्ती में दो।
Question - 16 : - ‘ढोल में तो जैसे पहलवान की जान बसी थी -‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
Answer - 16 : -
लुट्टन सिंह जब जवानी के जोश में आकर चाँद सिंह नामक मैंजे हुए पहलवान को ललकार बैठा तो सारा जनसमूह, राजा और पहलवानों का समूह आदि की यह धारणा थी कि यह कच्चा किशोर जिसने कुश्ती कभी सीखी नहीं है, पहले दाँव में ही ढेर हो जाएगा। हालाँकि लुट्टन सिंह की नसों में बिजली और मन में जीत का जज्बा उबाल खा रहा था। उसे किसी की परवाह न थी। हाँ, ढोल की थाप में उसे एक-एक दाँव-पेंच का मार्गदर्शन जरूर मिल रहा था। उसी थाप का अनुसरण करते हुए उसने ‘शेर के बच्चे’ को खूब धोया, उठा-उठाकर पटका और हरा दिया। इस जीत में एकमात्र ढोल ही उसके साथ था। अत: जीतकर वह सबसे पहले ढोल के पास दौड़ा और उसे प्रणाम किया।
Question - 17 : - ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के प्रारंभ में चित्रित प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। इस कथन पर टिप्पणी र्काजिए।
Answer - 17 : -
कहानी के प्रारंभ में प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। रात के भयावह वर्णन में बताया गया है कि चारों तरफ सन्नाटा है। सियारों का क्रदन व उल्लू की डरावनी आवाज निस्तब्धता को कभी-कभी भंग कर देती थी। गाँव की झोपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। इससे रात्रि की निस्तब्धता में बाधा नहीं पड़ती थी।
Question - 18 : - पहलवान लुट्टन के सुख-चैन भरे दिनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Answer - 18 : -
पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह-दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुंघा दी। अब वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।
Question - 19 : - लुट्टन के राज-पहलवान बन जाने के बाद की दिनचय पर प्रकाश डालिए।
Answer - 19 : -
लुट्टन जब राज-पहलवान बन गया तो उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन मिलने से वह राज-दरबार का दर्शनीय जीव बन गया। ठाकुरबाड़े के सामने पहलवान गरजता-‘महावीर’। लोग समझ लेते पहलवान बोला। मेलों में वह घुटने तक लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह चलता था। मेले के दंगल में वह लैंगोट पहनकर, शरीर पर मिट्टी मलकर स्वयं को साँड़ या भैंसा साबित करता रहता था।
Question - 20 : - ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लुट्टन का चरित्र- चित्रण र्काजिए।
Answer - 20 : -
लुट्टन पहलवान के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1 व्यक्तित्व-लुट्टन सिंह लंबा-चौड़ा व ताकतवर व्यक्ति था। वह लंबा चोंगा पहनता था तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधता था। वह इकलौती एवं अनाथ संतान था। अत: उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया था।
2 भाग्यहीन-लुट्टन का भाग्य शुरू से ही खराब था। बचपन में माता-पिता गुजर गए। पत्नी युवावस्था में ही चल बसी थी। उसके दोनों लड़के महामारी की भेंट चढ़ गए। इस प्रकार वह सदैव पीड़ित रहा।
3 साहसी-लुट्टन साहसी था। उसने अपने साहस के बल पर चाँद सिंह जैसे पहलवान को चुनौती दी तथा उसे हराया। उसने ‘काला खाँ’ जैसे पहलवान को भी चित कर दिया। महामारी में भी वह सारी रात ढोल बजाता था।
4 संवेदनशील-लुट्टन में संवेदना थी। वह अपनी सास पर हुए अत्याचारों को सहन नहीं कर सका और पहलवान बन गया। गाँव में महामारी के समय निराशा का माहौल था। ऐसे में वह रात में ढोल बजाकर लोगों में जीने के प्रति उत्साह पैदा करता था।