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Chapter 6 भू आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes) Solutions

Question - 1 : -
निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(क) निक्षेप
(ख) ज्वालामुखीयता
(ग) पटल-विरूपण ।
(घ) अपरदन

Answer - 1 : - (घ) अपरदन।

Question - 2 : -
जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(क) ग्रेनाइट
(ख) क्वार्ट्ज
(ग) चीका (क्ले) मिट्टी
(घ) लवण

Answer - 2 : - (घ) लवण।

Question - 3 : -
मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(क) भू-स्ख लन
(ख) तीव्र प्रवाही बृहत् संचालन
(ग) मन्द प्रवाही बृहत् संचलन
(घ) अवतल/धसकन।

Answer - 3 : - (क) भू-स्खलन।

Question - 4 : - अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?

Answer - 4 : - अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। जैव मात्रा एवं जैव विविधता वनस्पति की उपज है। विशेषतः अपक्षय वातावरण एवं खनिजों के अयने के स्थानान्तरण की दिशा में उपयोगी है। इससे नई सतहों का निर्माण होता है, जिससे रासायनिक प्रक्रिया द्वारा सतह में नमी और हवा के वेधन में सहायता मिलती है। इससे मिट्टी के अन्दर ह्युमिक कार्बनिक एवं अम्ल जैसे तत्त्वों के उत्पादन में वृद्धि से जैव विविधता को प्रोत्साहन मिलता है। इस प्रकार अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता को योगदान प्रदान करता है।

Question - 5 : -
बृहत संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या है? सूचीबद्ध कीजिए।

Answer - 5 : -

बृहत् संचलन के अन्तर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का मलबा (Debris) गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप बृहत् मात्रा में स्थानान्तरित होता है। बृहत् संचलन में कोई भी भू-आकृतिक कारक; जैसे–प्रवाहित जल, हिमानी, वायु आदि सीधे रूप में सम्मिलित नहीं होते हैं। बृहत् संचलन को तीन मुख्य प्रकारों में सूचीबद्ध किया जाता है

  1. मन्द संचलन,
  2. तीव्र संचलन तथा
  3. भूमि संचलन।

Question - 6 : - विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य सम्पन्न करते हैं?

Answer - 6 : -

विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक निम्नलिखित हैं

  1. प्रवाहित जल,
  2. संचलित हिमखण्ड अथवा हिमानी,
  3. वायु,
  4. भूमिगत जल,
  5. लहरें आदि।
गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारकों का प्रधान कार्य अपरदन या काटव करता है। इनके द्वारा प्रभावित उभरा हुआ धरातलीय भू-भाग अवतलित होता रहता है तथा पूर्व अवतलित क्षेत्रों में भराव अथवा अधिवृद्धि होती है।

Question - 7 : - क्या मृदा-निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?

Answer - 7 : - मृदा-निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है। अपक्षय जलवायु, चट्टान की संरचना तथा जैविक तत्त्वों पर निर्भर होता है। कालान्तर में ये सभी कारक मिलकर अपक्षयी प्रावार की मूल विशेषताओं को उत्पन्न करते हैं और मृदा-निर्माण के मूल आधार बनते हैं। इसलिए अपक्षय मृदा-निर्माण में आवश्यक अनिवार्यता है।

Question - 8 : - “हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है।” विवेचना कीजिए।

Answer - 8 : - हम जानते हैं कि भूपर्पटी गत्यात्मक है। यह क्षैतिज एवं लम्बवत् दिशाओं में संचालित होती रहती है। भूपर्पटी का निर्माण करने वाली पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों में उत्पन्न अन्तर पृथ्वी की बाह्य शक्ति से अनवरत रूप से प्रभावित होता रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि धरातल स्थलमण्डल के अन्तर्गत उत्पन्न बाह्य शक्तियों तथा पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों द्वारा प्रभावित रहता है। आन्तरिक शक्तियाँ धरातल पर रचनात्मक रूप से अपना कार्य करती रहती हैं। महाद्वीप, पर्वत, पठार आदि स्थलाकृतियों का निर्माण इसी शक्ति का परिणाम है जबकि बाह्य शक्तियाँ धरातल के उभरे हुए भागों के समतलीकरण के कार्य में संलग्न रहती हैं। अतएव दोनों शक्तियों की यह भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनिक बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। इस प्रकार पृथ्वी इन शक्तियों के खेल का रंगमंच है।

Question - 9 : - बर्जिनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।” व्याख्या कीजिए।

Answer - 9 : -

बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ वास्तव में अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्यातप से ही प्राप्त करती हैं। तापक्रम और वर्षण दो महत्त्वपूर्ण जलवायु तत्त्व हैं जो विभिन्न प्रकार से सूर्य द्वारा ही नियन्त्रित होते हैं। ये जलवायु तत्त्व रासायनिक, भौतिक एवं जैविक कारकों को संचालित कर भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को गतिशील रखते हैं। इससे चट्टानों में रासायनिक एवं भौतिक अभिक्रियाएँ सम्पन्न होती हैं जिसका परिणाम अपक्षय, बृहत् संचलन एवं अपरदन के रूप में प्रकट होता है।

वास्तव में, समस्त वायुमण्डलीय शक्तियों का स्रोत सूर्य ही है। इसी से ऊर्जा एवं अन्तर्जनित शक्तियाँ नियन्त्रित होती हैं। इसी से प्राप्त प्रति इकाई क्षेत्र पर अनुप्रयुक्त शक्ति को प्रतिबल कहते हैं। ठोस पदार्थ में प्रतिबल धक्का और खिंचाव से उत्पन्न होता है। यही प्रतिबल चट्टानों को तोड़ता है। गुरुत्वाकर्षण प्रतिबल के अतिरिक्त आणविक प्रतिबल से भी धरातल के पदार्थ प्रभावित चट्टानों को तोड़ता है। गुरुत्वाकर्षण प्रतिबल के अतिरिक्त आणविक प्रतिबल से भी धरातल के पदार्थ प्रभावित होते हैं। अतः शक्ति के इन सभी स्रोतों का मूल स्रोत वस्तुतः सूर्य ही है जो अप्रत्यक्ष रूप से अन्य स्रोतों को उत्पन्न करके जलवायु तत्त्वों के रूप में कार्य करता है। यही कारक रासायनिक एवं भौतिक ऊर्जा उत्पन्न करके भू-आकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा भूपर्पटी में परिवर्तन उत्पन्न करता है। हमारे धरातल पर विभिन्न प्रकार के जलवायु प्रदेश उपलब्ध हैं। इन प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ होती रहती हैं जिसके लिए धरातल पर तापीय प्रवणता, अक्षांशीय दशाएँ, वर्षण एवं अन्य मौसमी दशाएँ उत्तरदायी होती हैं परन्तु इन सभी को नियन्त्रित एवं प्रभावित करने वाला एकमात्र ऊर्जा स्रोत सूर्य ही होता है।

Question - 10 : - क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

Answer - 10 : -

भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र नहीं हैं। अपक्षय के अन्तर्गत वायुमण्डलीय तत्त्वों के प्रति धरातल के पदार्थों की प्रतिक्रिया सम्मिलित होती है। वास्तव में अपक्षय के अन्दर अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो पृथक् या सामूहिक रूप से धरातल के पदार्थों को विखण्डित करने के लिए प्रयत्नशील रहती हैं।

अपक्षय प्रक्रिया का एक वर्ग रासायनिक क्रियाओं; जैसे-जलयोजन, ऑक्सीकरण, कार्बोनेट विलयन, मृदा जल और अन्य अम्ल द्वारा विघटन के लिए कार्यरत रहता है। इसमें ऊष्मा के साथ जल और वायु की विद्यमानता सभी रासायनिक प्रक्रियाओं को तीव्र गति देने के लिए आवश्यक है।

अपक्षय प्रक्रिया का दूसरा वर्ग जिसे भौतिक अपक्षय कहा जाता है. अनुप्रयुक्त बलों पर आश्रित होता है जिसमें तापक्रम, दबाव आदि से चट्टानों में संकुचन एवं विस्तारण के कारण चट्टानों की सन्धियाँ कमजोर होकर विदीर्ण होने लगती हैं।

वास्तव में, भौतिक और रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ दोनों भिन्न-भिन्न हैं, फिर भी ये दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से प्रभावित होने के कारण स्वतन्त्र नहीं हैं। उदाहरण के लिए, तापमान जिसे भौतिक अपक्षय का महत्त्वपूर्ण कारक कहा जाता है जब तक सक्रिय नहीं होता तब तक वह चट्टानों की रासायनिक संरचना के साथ अभिक्रिया नहीं करेगा। इसी प्रकार जल किसी चट्टान से तब तक कोई अभिक्रिया नहीं करेगा जब तक उसे ताप या दाब के कारण ऊष्मा प्राप्त नहीं होगी। अत: भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय एक-दूसरे से अलग-अलग होते हुए भी स्वतन्त्र नहीं हैं बल्कि वायुमण्डलीय ऊष्मा के कारण नियन्त्रित हैं।

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