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Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Solutions

Question - 1 : -
अनाज, दाल, फल तथा सब्जियों से हमें क्या प्राप्त होता है?

Answer - 1 : -

  1. अनाज – जैसे गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरी तथा ज्वार से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है जो हमें ऊर्जा प्रदान करता है।
  2. दालें – जैसे चना, मटर, मूंग, उड़द, अरहर और मसूर इत्यादि सभी दालें हैं जो हमें प्रोटीन प्रदान करती हैं। जो हमारे शरीर की टूट-फूट की मरम्मत में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
  3. फल तथा सब्जियाँ – जैसे घीया, तोरी, गोभी, मटर, आलू अंगूर, आम, अनार, अनन्नास इत्यादि हमें विटामिन. खनिज व कुछ मात्रा में प्रोटीन इत्यादि प्रदान करते हैं।

Question - 2 : -
जैविक तथा अजैविक कारक किस प्रकार फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं?

Answer - 2 : -

जैविक कारक – जैसे कीट, नेमेटोड, केंचुआ व अन्य जीवाणु इत्यादि सभी जैविक कारक में आते हैं। ये फसलों के उत्पादन में भी सहायता करते हैं, जैसे- फलीदार पौधों की जड़ों में पाए जाने वाले जीवाणु जो वायुमण्डले की नाइट्रोजन से यौगिक बनाते हैं, केंचुआ भी मिट्टी को पोली (सरन्ध्र व नरम) बनाकर उपजाऊ बनाता है जिससे फसल उत्पादन बढ़ता है परन्तु कुछ कीट व नेमेटोड फसल उत्पादन को कम करते हैं। अतः हमें इन परिस्थितियों को सहन करने वाली किस्में प्रयोग करनी चाहिए जैसे कम परिपक्व काल वाली फसलें आर्थिक दृष्टि से अच्छी होती हैं।

अजैविक कारक – जैसे वायु, तापमान, मिट्टी, जल इत्यादि अजैविके कारक में गिने जाते हैं। भूमि की अम्लीयता या क्षारकता, गर्मी, ठण्ड तथा पाला इत्यादि फसल उत्पादन को कम करते हैं। अतः हमें ऐसी फसलों को उपयोग करना चाहिए जो इन सभी परिस्थितियों को अच्छी प्रकार सहन कर सकें। इसके लिए मिश्रित फसलें वे अन्तर-फसली विधियाँ अपनानी चाहिए।

Question - 3 : -
फसल सुधार के लिए ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण क्या हैं?

Answer - 3 : -

पशुओं के लिए चारा प्राप्त करने के लिए ऐसी फसलें अधिक उपयुक्त होती हैं जिनमें पौधे लंबे तथा सघन शाखाओं वाले हों, अर्थात् यह फसल का ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण है। इसी प्रकार अनाज उत्पादन के लिए बौने पौधे उपयुक्त ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण है, क्योंकि इनको उगाने के लिए कम पोषक तत्वों की आवश्यकता होगी। इनके गिरने की संभावनाएँ भी कम होंगी। फसलों के उगने से लेकर कटाई तक कम समय लगना आदि उपयुक्त ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण कहलाते हैं। ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुणों वाली किस्में अधिक उत्पादन करने में सहायक होती हैं।

Question - 4 : -
वृहत् पोषक क्या हैं और इन्हें वृहत्पोषक क्यों कहते हैं?

Answer - 4 : -

वे तत्त्व जो पौधों की वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं उन्हें वृहत् पोषक तत्त्व कहते हैं। ये पोषक तत्त्व बहुत अधिक मात्रा में आवश्यक होते हैं अतः इन्हें पोषक तत्त्व कहते हैं।

Question - 5 : -
पौधे अपना पोषक कैसे प्राप्त करते हैं?

Answer - 5 : -

पौधे पोषक तत्त्वों को खाद तथा उर्वरकों से प्राप्त करते हैं।

Question - 6 : -
मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलना किजिए।

Answer - 6 : -

मिट्टी की उर्वरता की दृष्टि से खाद तथा उर्वरक के उपयोग की तुलनाः
खाद व उर्वरक दोनों के प्रयोग में निम्नलिखित अन्तर है :

Question - 7 : -
निम्नलिखित में से कौन-सी परिस्थिति में सबसे अधिक लाभ होगा? क्यों?
(a) किसान उच्चकोटि के बीज का उपयोग करें, सिंचाई ना करें अथवा उर्वरक का उपयोग ना करें।
(b) किसान सामान्य बीजों का उपयोग करें, सिंचाई करें तथा उर्वरक का उपयोग करें।
(c) किसान अच्छी किस्म के बीज का प्रयोग करें। सिंचाई करें, उर्वरक का उपयोग करें तथा फसल सुरक्षा की विधियाँ अपनाएँ।

Answer - 7 : -

परिस्थिति (c) में सबसे अधिक लाभ होगा। अच्छी किस्म के बीजों का चयन परिस्थितियों के अनुसार, उनकी रोगों के प्रति प्रतिरोधकता, उत्पादन की गुणवत्ता एवं उच्च उत्पादन क्षमता के अनुसार करने से उत्पादन अच्छा होता है। गुणवत्ता के कारण फसल का अच्छा मूल्य मिलता है। समय-समय पर सिंचाई करने और उर्वरकों का उपयोग करने से फसल अच्छी होती है। फसल को कीटों, पीड़कों तथा खरपतवार से बचाने के लिए कीटनाशको पीड़कनाशकों, खरपतवारनाशकों का उपयोग करना चाहिए। उचित फसल-चक्र अपनाकर भी खरपतवार और पीड़कों से फसल की सुरक्षा की जा सकती है।

Question - 8 : -
फसल की सुरक्षा के लिए निरोधक विधियाँ तथा जैव नियंत्रण क्यों अच्छा समझा जाता है?

Answer - 8 : -

फसलों की सुरक्षा के लिए बचाव की विधियों तथा जैविक विधियों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये न तो फसलों को न ही वातावरण को हानि पहुँचाती हैं। पीड़कनाशी व अन्य रासायनिक पदार्थ फसलों को हानि पहुँचाते हैं तथा वातावरण को प्रदूषित करते हैं।

Question - 9 : -
भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं?

Answer - 9 : -

अनाज के भण्डारण में बहुत हानि हो सकती है। इस हानि के लिए जैविक तथा अजैविक दोनों कारक उत्तरदायी हैं।
जैविक कारक – जैविक कारकों में कीट, केतक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु आते हैं।
अजैविक कारक – अजैविक कारकों में भण्डारण के स्थान पर उपयुक्त नमी व ताप का अभाव है। ये दोनों प्रकार के कारक फसल की गुणवत्ता को कम करते हैं। और वजन भी कम करते हैं। बीजों के अंकुरण की क्षमता कम हो जाती है और उत्पाद बदरंग हो जाते हैं। अतः इन कारकों पर नियंत्रण पाने के लिए अनाज को धूप व छाया में सुखाना चाहिए और फिर धूमक का प्रयोग करना चाहिए ताकि उसमें पीड़क उत्पन्न न हो सके।

Question - 10 : -
पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों?

Answer - 10 : -

विदेशज नस्लों (Foreign or Exotic Breeds) में दुग्ध स्रवणकाल देशज नस्लों (desi breeds) की अपेक्षा अधिक लंबा होता है। देशज एवं विदेशज नस्लों के बीच संकरण कराने पर संकर नस्लें उत्पन्न होती हैं। इन्हें प्राकृतिक (Natural) क्रॉस (Cros8) अथवा कृत्रिम वीर्यसेचन (Artificial Insemination) द्वारा उत्पन्न किया जाता है। कृत्रिम वीर्यसेचन से अनेकों लाभ हैं, जैसे-

  1. एक बैल से प्राप्त शुक्राणु द्वारा 3000 तक गायों को निषेचित कर सकते हैं।
  2. हिमशीतित वीर्य को लंबे काल तक संचित रखा जा सकता है।
  3. इसे देश के सुदूर भागों तक पहुँचाया जा सकता है।
  4. सफल निषेचन एवं आर्थिक दृष्टि से यह उपयोगी तथा लाभकारी है।

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