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Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Solutions

Question - 1 : -
वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं?

Answer - 1 : -

प्रथम विश्व युद्ध के अंत में साम्राज्यवादी जर्मनी की हार के बाद सम्राट केजर विलियम द्वितीय अपनी जान बचाने के लिए हॉलैण्ड भाग गया। इस अवसर का लाभ उठाते हुए संसदीय दल वाइमर में मिले और नवम्बर, 1918 ई. में वाइमर गणराज्य नाम से प्रसिद्ध एक गणराज्य की स्थापना की। इस गणराज्य को जर्मनों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनों की हार के बाद मित्र सेनाओं ने इसे जर्मनों पर थोपा था।
वाइमर गणराज्य की प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार थीं प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त जर्मनी पर थोपी गई वर्साय की कठोर एवं अपमानजनक संधि को वाइमर गणराज्य ने स्वीकार किया था इसलिए बहुत सारे जर्मन न केवल प्रथम विश्वयुद्ध में हार के लिए अपितु वर्साय में हुए अपमान के लिए भी वाइमर गणराज्य को ही जिम्मेदार मानते थे। वर्साय की संधि द्वारा जर्मनी पर लगाए गए 6 अरब पौंड के जुर्माने को चुकाने में वाइमर गणराज्य असमर्थ था।

जर्मनी के सार्वजनिक जीवन में आक्रामक फौजी प्रचार और राष्ट्रीय सम्मान व प्रतिष्ठा की चाह के सामने वाइमरे गणराज्य का लोकतांत्रिक विचार गौण हो गया था। इसलिए वाइमर गणराज्य के समक्ष अस्तित्व को बचाए रखने का संकट उपस्थित हो गया था। रूसी क्रान्ति की सफलता से प्रोत्साहित होकर जर्मनी के कुछ भागों में साम्यवादी प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था। वाइमर गणराज्य द्वारा 1923 ई. में हर्जाना चुकाने से इनकार करने पर फ्रांस ने जर्मनी के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र ‘रूर’ पर कब्जा कर लिया जिसके कारण वाइमर गणराज्य की प्रतिष्ठा को बहुत ठेस पहुँची। 1929 ई. की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण जर्मनी में महँगाई बहुत अधिक बढ़ गई। वाइमर सरकार मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण करने में असफल रही। कारोबार ठप्प हो जाने से समाज में बेरोजगारी की समस्या अपने चरम पर पहुँच गई थी।

Question - 2 : -
इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 ई. तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी?

Answer - 2 : -

जर्मनी में नाजीवाद की लोकप्रियता के मुख्य कारण इस प्रकार थे-
(i) आर्थिक संकट- प्रथम विश्वयुद्ध चार वर्षों तक चलता रहा। इसे लम्बे युद्ध में जर्मनी को अपार धन की हानि उठानी पड़ी। युद्ध के बाद देश में वस्तुओं के भाव बहुत बढ़ गए। जर्मन सरकार ने बड़े पैमाने पर मुद्रा को छापना शुरू कर दिया जिसके कारण उसकी मुद्रा मार्क को मूल्य तेजी से गिरने लगा। अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 3,53,000 मार्क, अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसम्बर में 9,88,60,000 मार्क हो गई। इस तरह एक डॉलर में खरबों मार्क मिलने लगे। जैसे-जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगीं। 1929 में अमेरिका तथा सम्पूर्ण विश्व में आए आर्थिक संकट ने जर्मनी की स्थिति को और भी भयावह बना दिया।

(ii) वर्साय की सन्धि- जर्मनी को प्रथम विश्व युद्ध में पराजय के बाद वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया। इस कठोर व अपमानजनक संधि को जर्मन कभी मन से स्वीकार न सके। इसी अपमान का प्रतिफल था कि जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद का जन्म हुआ। जर्मन लोग हिटलर में अपने जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक का प्रतिबिम्ब देखते थे।

(iii) हिटलर का व्यक्तित्व- वास्तव में हिटलर का व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली था। हिटलर एक उत्कृष्ट वक्ता था। इसके जोशवर्द्धक भाषण लोगों पर जादू, जैसा प्रभाव डालते थे। लोग उसके भाषणों को सुनने के लिए दूर-दूर से आया करते थे। उसने अपने भाषणों में वादा किया कि “वह बेरोजगारों को रोजगार और नात्सीवाद और हिटलर का उदय नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा और तमाम विदेशी साजिशों का मुंहतोड़ जवाब देगा। लोगों ने उसके समर्थन में बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं। नासियों ने अपने प्रचार में हिटलर को एक ऐसे मसीहा के रूप में पेश किया जैसे उसका जन्म ही जर्मनों के उत्थान के लिए हुआ हो।

(iv) वाइमर गणराज्य की विफलता- वाइमर संविधान में कुछ ऐसी कमियाँ थीं जिनकी वजह से गणराज्य कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था। इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थी। इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था। हर बार गठबंधन सरकार सत्ता में आ रही थी। दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था। अपने छोटे से जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रिमण्डलों के हाथों में रहा और उनकी औसत अवधि 239 दिन से ज्यादा नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर इस्तेमाल किया गया। पर इन सारे नुस्खों के बावजूद संकट दूर नहीं हो पाया। लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों को विश्वास खत्म होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।

(v) राजनैतिक उथल-पुथल- यद्यपि जर्मनी में अनेक राजनैतिक दल थे जैसे राष्ट्रवादी, राजभक्त, कम्युनिस्ट, सामाजिक, लोकतंत्रवादी आदि। यद्यपि लोकतंत्रात्मक सरकार में इनमें से कोई भी बहुमत में नहीं था। दलों में मतभेद अपने चरम पर थे। इसने सरकार को कमजोर कर दिया और अंततः नाजियों को सत्ता हथियाने का अवसर दे दिया।

(vi) जर्मनों की लोकतंत्र में आस्था नहीं थी- प्रथम विश्व युद्ध के अन्त में जर्मनी की हार के बाद जर्मनों का संसदीय संस्थाओं में कोई विश्वास नहीं था। उस समय जर्मनी में लोकतंत्र एक नया व भंगुर विचार था। लोग स्वाधीनता व आजादी की अपेक्षा प्रतिष्ठा और यश को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने खुले दिल से हिटलर का साथ दिया क्योंकि उसमें उनके सपने पूरे करने की योग्यता थी।

Question - 3 : -
नात्सी सोच के खास पहलू कौन-से थे?

Answer - 3 : -

नात्सी सोच के खास पहलू इस प्रकार थे-

  1. नाजी दल जर्मनी को अन्य सभी देशों से श्रेष्ठ मानता था और पूरे विश्व पर जर्मनी का प्रभाव जमाना चाहता था।
  2. इसने युद्ध की सराहना की तथा बल प्रयोग को यशोगान किया।
  3. इसने जर्मनी के साम्राज्य विस्तार और उन सभी उपनिवेशों को जीतने पर ध्यान केन्द्रित किया जो उससे छीन लिए गए थे।
  4. ये लोग ‘शुद्ध जर्मनों एवं स्वस्थ नॉर्डिक आर्यों के नस्लवादी राष्ट्र का सपना देखते थे और उन सभी का खात्मा चाहते थे जिन्हें वे अवांछित मानते थे।
  5. नाजियों की दृष्टि में देश सर्वोपरि है। सभी शक्तियाँ देश में निहित होनी चाहिए। लोग देश के लिए हैं न कि देश लोगों के लिए।
  6. नाजी सोच सभी प्रकार की संसदीय संस्थाओं को समाप्त करने के पक्ष में थी और एक महान नेता के शासन में विश्वास रखती थी।
  7. यह सभी प्रकार के दल निर्माण व विपक्ष के दमन और उदारवाद, समाजवाद एवं कम्युनिस्ट विचारधाराओं के उन्मूलन की पक्षधर थी।
  8. इसने यहूदियों के प्रति घृणा का प्रचार किया क्योंकि इनका मानना था कि जर्मनों की आर्थिक विपदा के लिए यही लोग जिम्मेदार थे।

Question - 4 : -
नासियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफ़रत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?

Answer - 4 : -

हिटलर ने 1933 ई. में तानाशाह बनने के बाद सभी शक्तियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। हिटलर ने जर्मनी में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार का गठन किया। उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। एक दल, एक नेता और पूरी तरह अनुशासन उसके शासन का आधार था। हिटलर ने यहूदियों के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण प्रचार शुरू किया जो यहूदियों के प्रति जर्मनों में नफरत फैलाने में सहायक सिद्ध हुआ। यहूदियों के खिलाफ नाजियों के प्रोपेगैंडा के सफल होने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे-

  1. हिटलर ने जर्मन लोगों के दिलो-दिमाग में पहले ही अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था। जर्मन लोग हिटलर द्वारा कही गयी बातों पर आँख मूंदकर विश्वास करते थे। हिटलर के चमत्कारी व्यक्तित्व के कारण यहूदियों के विरुद्ध नाजी दुष्प्रचार सफल सिद्ध हुआ।
  2. नाजियों ने भाषा और मीडिया का बहुत सावधानी से प्रयोग किया। नाजियों ने एक नस्लवादी विचारधारा को जन्म दिया कि यहूदी निचले स्तर की नस्ल से संबंधित थे और इस प्रकार वे अवांछित थे।
  3. नाजियों ने प्रारम्भ से उनके स्कूल के दिनों में ही बच्चों के दिमागों में भी यहूदियों के प्रति नफरत भर दी। जो अध्यापक यहूदी थे उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और यहूदी बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया। इस प्रकार के तरीकों एवं नई विचारधारा के प्रशिक्षण ने नई पीढ़ी के बच्चों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने और नाजी प्रोपेगैन्डा को सफल बनाने में पूर्णतः सफलता प्राप्त की।
  4. यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने के लिए प्रोपेगैन्डा फिल्मों का निर्माण किया गया। रूढ़िवादी यहूदियों की पहचान की गई एवं उन्हें चिन्हित किया गया। उन्हें उड़ती हुई दाढ़ी और कफ्तान पहने दिखाया जाता था।
  5. उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा कह कर संबोधित किया जाता था। उनकी चाल की तुलना कुतरने वाले छछंदरी जीवों से की जाती थी।
  6. ईसा की हत्या के अभियुक्त होने के कारण ईसाइयों की यहूदियों के प्रति पारम्परिक घृणा का नाजियों ने पूरा लाभ उठाया जिससे जर्मन यहूदियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो गए।

Question - 5 : -
नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बताएँ।

Answer - 5 : -

नात्सी समाज में औरतों की भूमिका निम्न थी-

  1. घरेलू दायित्वों की पूर्ति करना।
  2. बच्चों को नात्सी मूल्यों एवं मान्यताओं की शिक्षा देना।
  3. शुद्ध आर्य नस्ल के बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को अनेक सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं।
  4. नात्सी मान्यता के अनुसार औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है।
  5. लड़कियों का फर्ज था अच्छी माँ बनना और शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना।
  6. आर्य नस्ल की शुद्धता को बनाए रखने के लिए यहूदियों से दूर रहना।
फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच अन्तर-

  1. फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका- फ्रांसीसी समाज में महिलाएं अपने हितों के प्रति जागरुक थीं। फ्रांस के विभिन्न राज्यों में 60 महिला राजनीतिक क्लब अस्तित्व में थे। वह पुरुषों के समान अधिकारों के लिए माँग कर रही थीं। लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य थी। वह अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र थीं। महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार प्रदान किया गया। महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और व्यवसाय कर सकती थीं।
  2. नासी शासन में औरतों की भूमिका- फ्रांस के विपरीत जर्मनी में महिलाओं को अपनी इच्छा से विवाह करने की अनुमति नहीं थी। महिलाओं के लिए नात्सी सरकार द्वारा निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली महिलाओं को सार्वजनिक रूप से दण्डित किया जाता था। उन्हें न केवल कारागार में डाल दिया जाता था बल्कि उनके नागरिक अधिकार, पति और परिवार से भी उन्हें वंचित कर दिया जाता था।

Question - 6 : -
नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?

Answer - 6 : -

हिटलर ने 1933 ई. में जर्मनी का तानाशाह बनने के बाद शासन की समस्त शक्तियों पर अधिकार कर लिया। उसने एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार का गठन किया। उसने लोकतांत्रिक विचारों को हासिए पर डाल दिया। उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया।
नात्सियों ने जनता पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए निम्न तरीके अपनाए-

(i) जनसंचार माध्यमों का उपयोग- शासन के लिए समर्थन हासिल करने और नात्सी विश्व दृष्टिकोण को फैलाने के लिए मीडिया का बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल किया गया। नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्यों का खूब सहारा लिया जाता था। नात्सीवाद ने लोगों के दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला, उनकी भावनाओं को भड़का कर उनके गुस्से और
नफरत को ‘अवांछितों पर केन्द्रित कर दिया। इसी अभियान से नासीवाद को सामाजिक आधार पैदा हुआ।

(ii) युंगफोक- युंगफोक 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का नात्सी युवा संगठन था। 10 साल की उम्र के बच्चों का युंगफोक में दाखिला करा दिया जाता था। 14 साल की उम्र में सभी लड़कों को नात्सियों के युवा संगठन हिटलर यूथ की सदस्यता लेनी पड़ती थी। इस संगठन में वे युद्ध की उपासना, आक्रामकता व हिंसा, लोकतंत्र की निंदा और यहूदियों, कम्युनिस्टों, जिप्सियों व अन्य ‘अवांछितों से घृणा को सबक सीखते थे। गहन विचारधारात्मक और शारीरिक प्रशिक्षण के बाद लगभग 18 साल की उम्र में वे लेबर सर्विस (श्रम सेवा) में शामिल हो जाते थे। इसके
बाद उन्हें सेना में काम करना पड़ता था और किसी नासी संगठन की सदस्यता लेनी पड़ती थी।

(iii) विशेष निगरानी एवं सुरक्षा दस्तों का गठन- पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टॉर्म टूपर्स (एस.ए.) के अलावा गेस्टापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एस.एस. (अपराध नियंत्रण पुलिस) और सुरक्षा सेवा (एस.डी.) का भी गठन किया गया। इन नवगठित दस्तों को बेहिसाब असंवैधानिक अधिकार दिए गए और इन्हीं की वजह से नात्सी राज्य को एक बूंखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई। गेस्टापो के यंत्रणा गृहों में किसी को भी बंद किया जा सकता था। ये नए दस्ते किसी को भी यातना गृहों में भेज सकते थे, किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश निकाला दिया जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था। दण्ड की आशंका से मुक्त पुलिस बलों ने निरंकुश और निरपेक्ष शासन का अधिकार प्राप्त ।
कर लिया था।

(iv) कम्युनिस्टों का दमन- अधिकांश कम्युनिस्टों को रातों-रात कंसन्ट्रेशन कैम्पों में बन्द कर दिया गया।
(v) तानाशाही की स्थापना- 3 मार्च, 1933 ई. को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम की सहायता से जर्मनी में तानाशाही की स्थापना की गई।
(vi) राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध- नात्सी दल के अतिरिक्त अन्य सभी राजनीतिक दलों और ट्रेड यूनियनों को प्रतिबंधित कर दिया गया।
(vii) रैलियाँ और जनसभाएँ- नासियों ने जनसमर्थन प्राप्त करने के लिए तथा जनता को मनोवैज्ञानिक रूप से नियंत्रित करने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जनसभाएँ आयोजित कीं।
(vii) अग्नि अध्यादेश- सत्ता प्राप्ति के पश्चात् अग्नि अध्यादेश के जरिए अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सभा करने की आजादी जैसे नागरिक अधिकारों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। हिटलर के जर्मन साम्राज्य की वजह से नात्सी राज्य को इतिहास में सबसे खूखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई। नाजियों ने जर्मनी की युद्ध में हार के लिए यहूदियों को जिम्मेदार ठहराया। यहूदी गतिविधियों पर कानूनी रूप से रोक लगा दी गई और उनमें से अधिकांश को या तो मार दिया गया या जर्मनी छोड़ने के लिए बाध्य किया गया।

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