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Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Solutions

Question - 1 : -
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफ़ी कुछ कहा जाएगा? (CBSE-2008, 2015)

Answer - 1 : -

लेखक ने कहा कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा उसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं-

  1. चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों की कुछ रीलें मिली हैं जिनके बारे में अभी तक कोई कुछ नहीं जानता। अब इन रीलों पर चर्चा होगी।
  2. विकासशील देशों में टेलीविजन व वीडियो के प्रसार से वहाँ चार्ली की फिल्में देखी जा रही हैं। अत: वहाँ उस पर विचार होगा।
  3. पश्चिमी देशों में चालों के बारे में नए दृष्टिकोण से विचार किया जा रहा है।

Question - 2 : -
चैप्लिन ने न सिर्फ फ़िल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?

Answer - 2 : -

लोकतांत्रिक बनाने का मतलब है कि चैप्लिन ने अपनी फ़िल्मों के माध्यम से कला को सभी के लिए अनिवार्य माना है। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए कला नहीं होती। वास्तव में चैप्लिन भीड़ में खड़े उस बच्चे के समान हैं जो इशारों से बता देता है कि राजा और प्रजा समान हैं दोनों में कोई अंतर नहीं। वर्ण व्यवस्था तोड़ने से आशय है कि फ़िल्में किसी जाति विशेष के लिए नहीं बनती। उसे सभी लोग देख सकते हैं। चार्ली की फ़िल्में सभी वर्ग और वर्ण के लोगों ने देखी। हम इस बात से सहमत हैं कि लेखक ने चार्ली के बारे में ठीक कहा है।

Question - 3 : -
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों ? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा? 

Answer - 3 : -

लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर द्वारा बनाई गई फिल्म ‘आवारा’ को कहा। राजकपूर ने भारतीय फ़िल्मों में पहली बार नायक को हँसी का पात्र बनाया। नायक स्वयं पर हँसता है। यह चार्ली की फिल्मों का प्रभाव था। लोगों ने उन पर चार्ली की नकल करने का आरोप लगाया, परंतु उन्होंने कभी परवाह नहीं की। गांधी व नेहरू भी चार्ली की तरह अपने पर हँसते थे। वे चार्ली की स्वयं पर हँसने की कला पर मुग्ध थे। इस कारण वे चार्ली का सान्निध्य चाहते थे।

Question - 4 : -
लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?

Answer - 4 : -

लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में ‘रस’ को श्रेयस्कर माना है। उसके अनुसार कलाकृति के आनंद को केवल अनुभव किया जा सकता है लेकिन रस तो साक्षात् आनंद है। जो एक बार हृदय में अवस्थित हो जाए तो असीम बन जाता है। फिर किसी अन्य वस्तु की कोई आवश्यकता नहीं रहती। कुछ रस कलाकृति के साथ आते हैं जो अपेक्षा से अधिक श्रेष्ठ होते हैं। कई रस एक साथ आए हों इससे संबंधित उदाहरण इस प्रकार हैं –
“वह अपनी माँ की लाडला था। माँ उसे बहुत प्यार करती, दुलारती। दुर्भाग्यवश पढ़ने-लिखने के बाद भी उसे नौकरी न मिली। वह धक्के खाता रहा। एक दिन नौकरी की तलाश में जाते हुए उसका एक्सीडेंट हो गया। इस हादसे में उसकी दोनों टाँग जाती रही। अब वह बूढ़ी माँ पर आश्रित हो गया।”
इस घटना में वात्सल्य, करुणा, शांत, भयानक आदि रसों की अभिव्यंजना हुई है।
“राहुल संजना को बहुत चाहता था। दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे। जब शादी की बाद चली तो संजना के पिता ने इंकार कर दिया। राहुल गम में डूबकर शराब पीने लगा। एक दिन इसी शराबी हालत में एक ट्रक ने उसके परखच्चे उड़ा दिए और वह मर गया। यह खबर सुनकर संजना भी पागल हो गई। वह विधवा का सा जीवन जीने लगी। जीवन भर शादी न करने का उसने निर्णय ले लिया।”
इस घटना में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों का चित्रण हुआ है। साथ ही करुणा और वीभत्स रस भी आए हैं।

Question - 5 : -
जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया? (CBSE-2011, 2012, 2014, 2015, 2016, 2017)

Answer - 5 : -

चार्ली का जीवन कष्टों में बीता। बचपन से ही उन्हें पिता का अलगाव सहना पड़ा। उनकी माँ परित्यक्ता थीं तथा दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थीं। भयंकर गरीबी व माँ के पागलपन से भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा। चार्ली को बड़े पूँजीपतियों व सामंतों ने बहुत दुत्कारा, अपमानित किया। इन जटिल परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘घुमंतू चरित्र बना दिया। उन्होंने बड़े लोगों की सच्चाई नजदीक से देखी तथा अपनी फिल्मों में उनकी गरिमामयी दशा दिखाकर उन्हें हँसी का पात्र बनाया।

Question - 6 : -
चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों में निहित त्रासदी/करुणा, हास्य का सामंजस्य, भारतीय कला और सौंदर्य शास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता? 

Answer - 6 : -

चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों में करुणा का हास्य में बदल जाना एक रस सिद्धांत की तरह था जो शायद भारतीय फ़िल्मों में कभी भी न आ पाए। हमारे यहाँ बँधी बँधाई परंपरा अथवा परिपाटी है। जो अभिनेता जैसा अभिनय कर रहा है वह उसी इमेज में कैद होकर रह जाना चाहता है। करुणा से भरी फ़िल्म है तो अंत तक वही रस रहेगा। करुणा और हास्य का मिश्रित हो जाना या करुणा का हास्य में बदल जाना यह भारतीय फ़िल्म कला का सिद्धांत नहीं है। हाँ, राजकपूर जी ने अवश्य यह साहस किया था लेकिन उनके आलोचक भी अचानक बढ़ गए थे।

Question - 7 : -
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है? 

Answer - 7 : -

चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति और समृद्ध की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखता है। ऐसे समय में वह स्वयं को हास्य का अवलंब बनाता है।

Question - 8 : -
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है? 

Answer - 8 : -

चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्नत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति और समृद्ध की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखता है। ऐसे समय में वह स्वयं को हास्य का अवलंब बनाता है।

Question - 9 : -
आपके विचार से मूक और सवाक् फ़िल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?

Answer - 9 : -

मेरे विचार से मूक और सवाक् फ़िल्मों में से मूक फ़िल्में करने में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है। मूक फ़िल्में बनाने के लिए कलाकारों के चुनाव से लेकर फ़िल्म की पटकथा तक पर पूरी मेहनत करनी पड़ती है। यदि फ़िल्म सवाक् है तो डॉयलॉग गलत बोल दिए जाने पर रीटेक करके ठीक किए जा सकते हैं। लेकिन मूक फ़िल्म में संकेतों में सबकुछ कहना और बताना होता है। जिसके लिए विशेष अध्ययन और शैली की आवश्यकता होती है। भारतीय सिनेमा में अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनीत ‘ब्लैक’ फ़िल्म का उदाहरण हमारे सामने हैं।

Question - 10 : - सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब

Answer - 10 : -

(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;
(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।

उत्तर:

(क) विद्यार्थी अपने अनुभव लिखें।
(ख) विद्यार्थी अपने अनुभव लिखें।

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