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Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth) Solutions

Question - 1 : -
निम्नलिखित में से कौन भू-गर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(क) भूकम्पीय तरंगें
(ख) गुरुत्वाकर्षण बल
(ग) ज्वालामुखी
(घ) पृथ्वी का चुम्बकत्व

Answer - 1 : - (ग) ज्वावालामुखी।

Question - 2 : -
दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
(क) शील्ड
(ख) मिश्र
(ग) प्रवाह
(घ) कुण्ड

Answer - 2 : - (ग) प्रवाह।

Question - 3 : -
निम्नलिखित में से कौन-सा स्थलमण्डल को वर्णित करता है?
(क) ऊपरी व निचले मैंटल
(ख) भूपटल व क्रोड
(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटले
(घ) मैंटल व क्रोड

Answer - 3 : - (ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल।

Question - 4 : -
निम्न में से कौन-सी भूकम्प तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं?
(क) ‘P’ तरंगें
(ख) ‘s’ तरंगें
(ग) धरातलीय तरंगें।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer - 4 : - (क) ‘P’ तरंगें।.

Question - 5 : - भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?

Answer - 5 : - भूकम्प के झटकों से उत्पन्न तरंगें भूगर्भीय तरंगें या भूकम्प तरंगें कहलाती हैं। आधारभूत रूप से भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं-भूगर्भिक तरंगें तथा धरातलीय तरंगें। भूगर्भिक तरंगें उद्गम केन्द्र से ऊर्जा मुक्त होने के समय पैदा होती हैं और पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं।इसलिए इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है (चित्र 3.1)। भूगर्भीय तरंगें भी दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ या प्राथमिक तरंगें तथा ‘S’ या द्वितीयक तरंगें कहा जाता है।

                             

Question - 6 : - भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।

Answer - 6 : -

भूगर्भ की प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करने वाले साधन निम्नलिखित हैं

  1. ठोस चट्टानें।।
  2. खनन क्षेत्र से प्राप्त चट्टानें।
  3. ज्वालामुखी उद्गार।

Question - 7 : - भूकम्पीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं।

Answer - 7 : - भूकम्पलेखी यन्त्र पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकम्पीय तरंगों का अभिलेखन होता है। किन्तु कुछ क्षेत्र ऐसे भी होते हैं जहाँ कोई भी तरंग अभिलेखित नहीं होती है। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र कहते हैं। यह देखा जाता है कि भूकम्पलेखीय भूकम्प अधिकेन्द्र में 105° के अन्दर किसी भी दूरी तक ‘P’ व ‘s’ दोनों ही तरंगों का लेखन करते हैं। किन्तु अधिकेन्द्र से 145° से परे केवल ‘P’ तरंगों की पहुँचना ही अंकित होता है ‘s’ तरंगों का नहीं। अत: वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकम्प अधिकेन्द्र से 105° और 145° के मध्य का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरंगों के लिए छाया क्षेत्र होता है। (परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर में लघु उत्तरीय प्रश्न सं० 2 के अन्तर्गत चित्र 3.4 देखें)

Question - 8 : - भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी सम्बन्धी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन करें।

Answer - 8 : - भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी प्रदान करने वाले अप्रत्यक्ष साधनों में पदार्थ के गुण-धर्म का विश्लेषण, खनन क्रिया या अन्य किसी प्रयोजना के अन्तर्गत पृथ्वी के अन्दर स्थित पदार्थों का ताप, दाब एवं घनत्व एवं इनके अतिरिक्त उल्काएँ और पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल वे चुम्बकीय पदार्थ उल्लेखनीय स्रोत हैं। पृथ्वी की मोटाई के आधार पर वैज्ञानिकों ने विभिन्न गहराई पर पाए पदार्थों के तापमान, दबाव एवं घनत्व के मान के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि गहराई बढ़ने पर इनमें वृद्धि होती है अतः पृथ्वी का आभ्यन्तर अधिक ताप, दाब व घनत्व वाले पदार्थों द्वारा निर्मित है। पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के साथ गुरुत्व का मान भी पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार बदलता है। इसके लिए पृथ्वी के भीतर पदार्थों का असमान वितरण उत्तरदायी माना जाता है, यह तथ्य चुम्बकीय सर्वेक्षण से भी सिद्ध होता है। अतः विभिन्न प्रकार के इन अप्रत्यक्ष स्रोतों के आधार पर पृथ्वी के आभ्यन्तर के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है किन्तु इन सभी में भूकम्पीय तरंगों से सर्वाधिक सही जानकारी प्राप्त होती है।

Question - 9 : -
 भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर यह तरंगें गुजरती हैं।

Answer - 9 : - भूकम्पीय तरंगों के संचरण का चट्टानों पर प्रभाव

भूकम्प अवधि से भूकम्पलेखी पर बने आरेख (चित्र 3.1) से भूकम्प तरंगों की दिशा एवं भिन्नता का अनुमान लगाया जाता है। इन भिन्न-भिन्न प्रकार की तरंगों और इनके संरचित होने की विभिन्न प्रणाली का चट्टानों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है जो इस प्रकार है

जैसे ही भूकम्पीय तरंगें चट्टानों में संचरण करती हैं तो इनमें कम्पन उत्पन्न होता है।
प्राथमिक (P) तरंगों से शैलों में कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के समानान्तर ही होती है। यह तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। इस दबाव के परिणामस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है।
अन्य तीन प्रकार की तरंगें संचरण गति के समकोण दिशा में कम्पन पैदा करती हैं।
द्वितीयक (S) तरंगें ऊध्र्वाधर तल में तरंगों की दिशा में समकोण पर कम्पन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं। उसमें उभार व गर्त उत्पन्न हो जाता है। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं इनसे चट्टानें विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं।

Question - 10 : - अन्तर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अन्तर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।

Answer - 10 : - अन्तर्वेधी आकृतियाँ-ज्वालामुखी उद्गार के द्वारा निकले लावे का प्रसार धरातल के बाहर एवं आन्तरिक भाग में होता है, इसी लावे के जमाव से आग्नेय शैलों का निर्माण हुआ है। जब ज्वालामुखी क्रिया के समय लावा धरातल पर प्रकट न होकर भूपटल के आन्तरिक भाग में ही ठण्डा हो जाता है तो उससे विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ अन्तर्वेधी आकृतियाँ (Intrusive Forms) कहलाती हैं। अन्तर्वेधी आकृतियाँ गहराई एवं अपने स्वरूप के आधार पर निम्नलिखित प्रकार की होती हैं

1. बैथोलिथ-भूपर्पटी में अधिक गहराई (कई किमी तक) पर मैग्मा भण्डारों के जमे हुए गुम्बदाकार वाले स्थलरूप बैथोलिथ कहलाते हैं। इनका ऊपरी भाग धरातल पर तभी प्रकट होता है। | जब अनाच्छादन प्रक्रिया द्वारा ऊपरी चट्टान का अपरदने हो जाता हैं (चित्र 3.2-I)।

2. लैकोलिथ-ये गुम्बदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टाने हैं जिनका तल समतल होता है। इनकी आकृति मिश्रित ज्वालामुखी गुम्बद से मिलती है जो धरातल पर देखे जा सकते हैं। कर्नाटक के पठार में
ग्रेनाइट चट्टानों से बनी ऐसी ही गुम्बदनुमा पहाड़ियाँ मिलती हैं। ये लैकोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं। | (चित्र 3.2-II)

3. लैपोलिथ-ऊपर उठे लावे का कुछ भाग जब क्षैतिज में तश्तरी के आकार में जम जाए तो वह लैपोलिथ कहलाता है। (चित्र 3.2-III)
4. फैकोलिथ-कई बार अन्तर्वेधी चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति एवं अभिनति के तल में लावे का जमाव हो जाता है। अतः ये परतनुमा लहरदार आकृति फैकोलिथ कहलाती है। (चित्र | 3.2-IV)

5. सिल एवं डाइक- अन्तर्वेधी चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठण्डा होकर जमने से बनी आकृति सिल या शीट कहलाती हैं। (चित्र 3.2-V) किन्तु जब अन्तर्वेधी चट्टानें क्षैतिज अवस्था में ठण्डी होकर जमने के बजाय दरारों में लम्बवत् या लगभग समकोण बनाते हुए दीवार की भाँति जम जाए तो इनको डाइक कहते हैं। पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र में यह आकृति बहुतायत में मिलती है। (चित्र 3.2-VI) ।

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