MENU

Chapter 4 मानव विकास (Human Development) Solutions

Question - 1 : -
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए :
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा विकास का सर्वोत्तम वर्णन करता है
(क) आकार में वृद्धि
(ख) गुण में धनात्मक परिवर्तन
(ग) आकार में स्थिरता
(घ) गुण में साधारण परिवर्तन।

(ii) मानव विकास की अवधारणा निम्नलिखित में से किस विद्वान की देन है
(क) प्रो० अमर्त्य सेन
(ख) डॉ० महबूब-उल-हक
(ग) एलन सी० सेम्पुल ।
(घ) रैटजेल।

Answer - 1 : -

(i) (ख) गुण में धनात्मक परिवर्तन।
(ii) (ख) डॉ० महबूब-उल-हक।

Question - 2 : - मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र कौन-से हैं?

Answer - 2 : -

दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान प्राप्त करना एवं एक शिष्ट जीवन जीने के लिए पर्याप्त साधनों का होना मानव विकास के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। मानव विकास के ये पक्ष तीन मूलभूत क्षेत्रों में निहित होने आवश्यक हैं

  1. संसाधनों तक पहुँच
  2. स्वास्थ्य एवं
  3. शिक्षा।
उपर्युक्त तीनों क्षेत्र के विकास से ही मानव विकास का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

Question - 3 : - मानव विकास के चार प्रमुख घटकों के नाम लिखिए।

Answer - 3 : -

मानव विकास के चार प्रमुख घटक हैं

  1. समता
  2. सतत पोषणीयता
  3. उत्पादकता और
  4. सशक्तीकरण।

Question - 4 : - मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है?

Answer - 4 : -

मानव विकास सूचकांक के आधार पर विश्व के देशों का वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से किया गया है, जिसे तालिका में स्पष्ट किया गया है

Question - 5 : - मानव विकास शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?

Answer - 5 : -

मानव विकास
मानव विकास का शाब्दिक अर्थ मानव के सर्वांगीण विकास से है। सर्वांगीण विकास के लिए मानव को. स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क तो चाहिए ही साथ ही विकास का उचित अवसर प्रदान करने वाला प्राकृतिक पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक परिवेश भी उपलब्ध होना चाहिए, जो एक नियोजित विकास प्रणाली का आधार है।

मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन डॉ० महबूब-उल-हक के द्वारा किया गया था। डॉ० हक ने मानव विकास का वर्णन एक ऐसे विकास के रूप में किया है जो लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है और उनके जीवन में सुधार लाता है। इस अवधारणा में सभी प्रकार के विकास का केन्द्र बिन्दु मनुष्य है। मानव विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जीना, ज्ञान प्राप्त करना तथा एक शिष्ट जीवन जीने के पर्याप्त साधनों का होना मानव विकास के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। अत: मानव विकास ऐसा विकास है जो विकास के विकल्पों में वृद्धि करता है। ये विकल्प स्थिर नहीं बल्कि परिवर्तनशील होते हैं। लोगों के विकल्पों में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में उनकी क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है। यदि इन क्षेत्रों में लोगों की क्षमता नहीं है तो विकल्प भी सीमित हो जाते हैं। जैसे एक अशिक्षित बच्चा डॉक्टर बनने का विकल्प नहीं चुन सकता क्योंकि उसका विकल्प शिक्षा के अभाव में सीमित हो गया है। इसलिए लोगों को विकास की धारा में सम्मिलित करने के लिए उनको विभिन्न विकल्पों के चयन की स्वतन्त्रता, अवसर और क्षमता में वृद्धि करना मानव विकास का मुख्य लक्ष्य है।

Question - 6 : - मानव विकास अवधारणा के अन्तर्गत समता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?

Answer - 6 : -

मानव विकास के अन्तर्गत समता और सतत पोषणीयता
मानव विकास की अवधारणा के मूलत: चार स्तम्भ हैं—

  1. समता
  2. सतत पोषणीयता
  3. उत्पादकता तथा
  4. सशक्तीकरण।
इन चारों आधारी पक्षों में से प्रथम दो पक्षों का सर्वाधिक महत्त्व है।

समता का आशय एक सन्तुलित समाज या प्रदेश से है, इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना महत्त्वपूर्ण है जिससे समतामूलक समाज का सृजन हो सके और लोगों को उपलब्ध अवसर-लिंग, प्रजाति, आय और जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान रूप से मिल सकें। भारत में स्त्रियों और सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों तथा दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों को विकास के समान अवसर प्राप्त नहीं होते; अत: मानव विकास में इस अभाव को दूर करने का प्रयास समतामूलक विकास के माध्यम से किया जाता है।
 
सतत पोषणीयता टिकाऊ विकास को अभिव्यक्त करती है। मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को विकास और संसाधन उपभोग के समान अवसर मिल सकें। अत: वर्तमान पीढ़ी को समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग भविष्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इस संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए विकास के अवसरों को कम करता है। इससे विकास का सतत चक्र अवरुद्ध हो जाता है। वर्तमान समय में पर्यावरण संसाधनों का जिस प्रकार दुरुपयोग हो रहा है उससे अनेक प्राकृतिक संसाधनों के समाप्त होने के खतरे में वृद्धि हुई है जिसे सतत पोषणीय विकास की बाधा के रूप में दर्ज किया जा सकता है। अत: मानव विकास अवधारणा की सतत पोषणीयता इसी गैर-टिकाऊ विकास की ओर सचेत करने पर बल देती है।

Free - Previous Years Question Papers
Any questions? Ask us!
×