MENU

Chapter 18 श्रम विभाजन और जाति प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Solutions

Question - 1 : -
जाती – प्रथा को श्रम – विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं ?

Answer - 1 : -

जातिप्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के निम्नलिखित तर्क हैं –

1. जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन भी कराती है। सभ्य समाज में श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में विभाजन अस्वाभाविक है।
2. जाति प्रथा में श्रम विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। इसमें मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा निजी क्षमता का विचार किए बिना किसी दूसरे के द्वारा उसके लिए पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। यह जन्म पर आधारित होता है।
3. भारत में जाति प्रथा मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पेशे में बाँध देती है, भले ही वह पेशा उसके लिए अनुपयुक्त या अपर्याप्त क्यों न हो। इससे उसके भूखों मरने की नौबत आ जाती है।

Question - 2 : -
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही हैं? क्या यह स्थिति आज भी हैं?

Answer - 2 : -

जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का कारण भी बनती रही है। भारत में जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति को जन्म के आधार पर एक पेशे से बाँध दिया जाता था। इस निर्णय में व्यक्ति की रुचि, योग्यता या कुशलता का ध्यान नहीं रखा जाता था। उस पेशे से गुजारा होगा या नहीं, इस पर भी विचार नहीं किया जाता था। इस कारण भुखमरी की स्थिति आ जाती थी। इसके अतिरिक्त, संकट के समय भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की अनुमति नहीं दी जाती थी। भारतीय समाज पैतृक पेशा अपनाने पर ही जोर देता था। उद्योग-धंधों की विकास प्रक्रिया व तकनीक के कारण कुछ व्यवसायी रोजगारहीन हो जाते थे। अत: यदि वह व्यवसाय न बदला जाए तो बेरोजगारी बढ़ती है। आज भारत की स्थिति बदल रही है। सरकारी कानून, सामाजिक सुधार व विश्वव्यापी परिवर्तनों से जाति-प्रथा के बंधन काफी ढीले हुए हैं, परंतु समाप्त नहीं हुए हैं। आज लोग अपनी जाति से अलग पेशा अपना रहे हैं।

Question - 3 : -
खक के मत से ‘दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या हैं? समझाइए।

Answer - 3 : -

लेखक के अनुसार, दासता केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। ‘दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है। जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है।

Question - 4 : -
शारीरिक वंश – परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद ‘समता’ को एक व्यवहाय सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?

Answer - 4 : -

शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह करते हैं क्योंकि समाज को अपने सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता तभी प्राप्त हो सकती है जब उन्हें आरंभ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराए जाएँ। व्यक्ति को अपनी क्षमता के विकास के लिए समान अवसर देने चाहिए। उनका तर्क है कि उत्तम व्यवहार के हक में उच्च वर्ग बाजी मार ले जाएगा। अत: सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

Question - 5 : -
सही में अबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दूष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा हैं, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तक दिया हैं। क्या इससे आप सहमत हैं?

Answer - 5 : -

आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। हम उनकी इस बात से सहमत हैं। आदमी की भौतिक स्थितियाँ उसके स्तर को निर्धारित करती है। जीवन जीने की सुविधाएँ मनुष्य को सही मायनों में मनुष्य सिद्ध करती हैं। व्यक्ति का रहन सहन और चाल चलन काफी हद तक उसकी जातीय भावना को खत्म कर देता है।

Question - 6 : -
आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया हैं अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैं? यदि नहीं, तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/ समझेगी?

Answer - 6 : -

आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। लेखक समाज की बात कर रहा है और समाज स्त्री-पुरुष दोनों से मिलकर बना है। उसने आदर्श समाज में हर आयुवर्ग को शामिल किया है। ‘भ्रातृता’ शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है-भाईचारा। यह सर्वथा उपयुक्त है। समाज में भाईचारे के सहारे ही संबंध बनते हैं। कोई व्यक्ति एक-दूसरे से अलग नहीं रह सकता। समाज में भाईचारे के कारण ही कोई परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचता है।

Question - 7 : -
आबेडकर ने जाति-प्रथा के भीतर पेशे के मामले में लचीलापन न होने की जो बात की हैं-उस संदर्भ में शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा ‘ पर पुनर्वचार कीजिए।

Answer - 7 : -

अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।

Question - 8 : -
‘काय-कुशलता पर जाति-प्रथा का प्रभाव’ विषय पर समूह में चचा कीजिए/ चचा के दौरान उभरने वाले बिंदुओं को लिपिबद्घ कीजिए। 

Answer - 8 : -

अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से करें।

Question - 9 : -
आबेडकर की कल्पना का समाज कैसा होगा?

Answer - 9 : -

अांबेडकर का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता व भाईचारे पर आधारित होगा। सभी को विकास के समान अवसर मिलेंगे तथा जातिगत भेदभाव का नामोनिशान नहीं होगा। समाज में कार्य करने वाले को सम्मान मिलेगा।

Question - 10 : -
मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर होती है ?

Answer - 10 : -

मनुष्य की क्षमता निम्नलिखित बातों पर निर्भर होती है –

  1. जाति-प्रथा का श्रम-विभाजन अस्वाभाविक है।
  2. शारीरिक वंश-परंपरा के आधार पर।
  3. सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की प्रतिष्ठा, शिक्षा, ज्ञानार्जन आदि उपलब्धियों के लाभ पर।
  4. मनुष्य के अपने प्रयत्न पर।

Free - Previous Years Question Papers
Any questions? Ask us!
×