MENU

Chapter 14 पहलवान की ढोलक Solutions

Question - 1 : -
कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।

Answer - 1 : -

कुश्ती के समय जब ढोल बजती थी तो लुट्टन की रगों में अजीब-सी हलचल पैदा हो जाती थी। उसका खून हर थाप पर उबलने लगता था। उसे ढोल की थाप प्रेरणा देती थी। उनके दाँव-पेंचों में अचानक फुरती और गति बढ़ जाती थी। पाठ में कई ध्वन्यात्मक शब्दों का उल्लेख भी कहानीकार ने किया है। ये शब्द हमारे मन को रंजित करते हैं, साथ ही हमें यह प्रेरणा भी देते प्रतीत होते हैं। इन शब्दों से मन में कुछ करने की लालसा जोर मारने लगती है। परोक्ष रूप से ये शब्द शक्ति देते हैं।

Question - 2 : -
कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवतन आए?

Answer - 2 : -

कहानी में अनेक मोड़ ऐसे हैं जहाँ पर लुट्टन के जीवन में परिवर्तन आते हैं। वे निम्नलिखित हैं-

1 बचपन में नौ वर्ष की आयु में उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई और उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। सास पर हुए अत्याचारों को देखकर बदला लेने के लिए वह पहलवानी करने लगा।
2 किशोरावस्था में उसने श्यामनगर दंगल में चाँद सिंह नामक पहलवान को हराया तथा ‘राज-पहलवान’ का दर्जा हासिल किया। उसने ‘काला खाँ’ जैसे प्रसिद्ध पहलवानों को जमीन सुंघा दी तथा अजेय पहलवान बन गया।
3 वह पंद्रह वर्ष तक राज-दरबार में रहा। उसने अपने दोनों बेटों को भी पहलवानी सिखाई। राजा साहब के अचानक स्वर्गवास के बाद नए राजा ने उसे दरबार से हटा दिया। वह गाँव लौट आया।
4 गाँव आकर उसने गाँव के बाहर अपना अखाड़ा बनाया तथा ग्रामीण युवकों को कुश्ती सिखाने लगा।
5 अकस्मात सूखा व महामारी से गाँव में हाहाकार मच गया। उसके दोनों बेटे भी इस महामारी की चपेट में आ गए। वह उन्हें कंधे पर लादकर नदी में बहा आया।
6 पुत्रों की मृत्यु के बाद वह कुछ दिन अकेला रहा और अंत में चल बसा।

Question - 3 : -
लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि ‘मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं यहींढोल है’?

Answer - 3 : -

वास्तव में, लुट्न पहलवान का कोई गुरु नहीं था। जब पहली बार वह दंगल देखने गया तो वहाँ ढोल की थाप पर दांव-पेंच चल रहे थे। पहलवान ने इन थापों को ध्यान से सुना और उसमें अजीब-सी ऊर्जा भर गई। उसने चाँद सिंह को ललकारा और उसे चित कर दिया। ढोल की थाप ने उसे दंगल लड़ने की प्रेरणा दी और वह जीत गया। इसीलिए उसने कहा होगा कि उसका गुरु कोई पहलवान नहीं बल्कि यही ढोल है।

Question - 4 : -
गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?

Answer - 4 : -

गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल बजाता रहा। इसका कारण था-गाँव में निराशा का माहौल। महामारी व सूखे के कारण चारों तरफ मृत्यु का सन्नाटा था। घर-के-घर खाली हो गए थे। रात्रि की विभीषिका में चारों तरफ सन्नाटा होता था। ऐसे में उस विभीषिका को पहलवान की ढोलक ही चुनौती देती रहती थी। ढोल की आवाज से निराश लोगों के मन में उमंग जगती थी। उनमें जीवंतता भरती थी। वह लोगों को बताना चाहता था कि अंत तक जोश व उत्साह से लड़ते रहो।

Question - 5 : -
ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?

Answer - 5 : -

ढोलक गाँववालों के लिए संजीवनी का काम करती थी। उनके मन में छाई उदासी को दूर करने में सहायक थी। उनके मन में जिजीविषा पैदा हो जाती थी। ढोल की हर थाप से उनके मन में चेतना आ जाती थी। बूढे, बच्चे जवानों की आँखों में अचानक चमक भर जाती थी। स्पंदनहीन और शक्तिहीन रगों में अचानक बिजली की तरह खून दौड़ने लगता था।

Question - 6 : -
महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूयस्ति के दूश्य में क्या अंतर होता था?

Answer - 6 : -

सूर्योदय का दूश्य-महामारी फैलने की वजह गाँव में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूंखते, कराहते अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों व आत्मीयों को ढाँडस देते थे। इस प्रकार उनके चेहरे पर चमक बनी रहती थी। वे बचे हुए लोगों को शोक न करने की बात कहते थे। सूर्यास्त का दृश्य-सूर्यास्त होते ही सभी लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में घुस जाते थे। उस समय वे चूँ तक नहीं करते थे। उनके बोलने की शक्ति भी जाती रहती थी। यहाँ तक कि माताओं में दम तोड़ते पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा!” कहकर पुकारने की हिम्मत भी नहीं होती थी। ऐसे समय में पहलवान की ढोलक की आवाज रात्रि की विभीषिका को चुनौती देती रहती थी।

Question - 7 : - कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शोक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था-

Answer - 7 : -

(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं हैं?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या काय किए जा सकते हैं?

उत्तर 

(क) अब न तो राजा रहे और न ही वे पहलवान। वास्तव में पहलवानी बहुत खर्चीला खेल है। फिर इसके लिए अभ्यास की नियमित आवश्यकता है। आज कल लोगों के पास इतना समय नहीं कि वे दिन में 18-20 कसरत करें फिर बदले में मिलता भी कुछ नहीं है। केवल नाम के सहारे पेट नहीं पल सकता।

(ख) कुश्ती की जगह अब घुड़सवारी, फुटबाल, क्रिकेट, टेनिस, बॉलीबाल, बेसबॉल आदि खेलों ने ली है। इन खेलों में पैसा और शोहरत दोनों हैं। फिर खेल से रिटायर होने के बाद भी जीविका बनी रहती है।

(ग) कुश्ती को यदि फिर से प्रिय खेल बनाना है तो इसके लिए राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को योजना बनानी चाहिए। व्यायामशालाएँ होनी चाहिए ताकि पहलवान कसरत कर सकें। अन्य खेलों की तरह ही जीतने वाले पहलवान को अच्छी खासी रकम इनाम में दी जानी चाहिए। यदि कोई पहलवान रिटायर हो जाए या दुर्घटना में उसे चोट लग जाए तो जीवनभर उसके लिए रोटी का प्रबंध किया जाना चाहिए।

Question - 8 : -
अक्षय स्पष्ट करें –
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

Answer - 8 : -

लेखक अमावस्या की रात की विभीषिका का चित्रण करता है। महामारी के कारण गाँव में सन्नाटा है। ऐसी स्थिति में कोई भावुक तारा आकाश से टूटकर अपनी रोशनी गाँव वालों को देना चाहे तो भी उसकी चमक व शक्ति रीस्ते में ही खत्म हो जाती है। तारे धरती से बहुत दूर हैं। भावुक तारे की असफलता पर अन्य तारे खिलखिलाकर हँसने लगते हैं। दूसरे शब्दों में, स्थिर तारे चमकते हुए लगते हैं तथा टूटा हुआ तारा समाप्त हो जाता है।

Question - 9 : -
पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया हैं। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

Answer - 9 : -

(क) “अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी।”
गाँव में छाई मायूसी को देखकर लगता था मानो अँधेरी रात भी रो रही है। ऐसा लगता था कि खाली पड़े आकाश में करुण कराहें वह अपने मन में दबा लेना चाहती हो ताकि गाँव का दुख कम हो सके।

(ख) “रात्रि अपने भीषणताओं के साथ चलती रही।”
यद्यपि गाँव का परिवेश भयानक और उदासी से भरपूर था। अतः रात भी इस मायूसी को समेटे अपनी गति से बीतती रही।

(ग) “रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी।”
रात जो बहुत ही भयानक प्रतीत होती थी। अपने स्वाभाविक शोर से वह सभी को भयभीत कर देती थी। लेकिन पहलवान की ढोलक की थाप ने इस भयानकता को चुनौती दे डाली।

Question - 10 : -
पाठ में मलेरिया और हैजे से पीडित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे/करेंगी?

Answer - 10 : -

पिछले दिनों हमारे प्रदेश के एक कस्बे में डेंगू का प्रकोप फैल गया। हमारे कस्बे में 7-8 हजार लोग रहते हैं। देखते ही देखते डेंगू का कहर पूरे कस्बे पर छाने लगा। लोगों को आनन-फानन में सरकारी और गैर-सरकारी अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। शाम होते-होते यह डेंगू तेरह लोगों को लील चुका था जिनमें तीन बच्चे भी थे। ऐसी स्थिति से सामना होते ही हमने मरीजों को तुरंत नजदीक के अस्पताल में भर्ती करवाया। घर की साफ़-सफ़ाई के बारे में प्रत्येक व्यक्ति को बताया। साथ ही कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के लोगों से संपर्क किया। वे कुछ ही देर में हमारे गाँव (कस्बे) में आ गए। उन्होंने जी जान से लोगों की सेवा की। वे कई दिनों तक हमारे कस्बे में रहे। इस प्रकार हमने डेंगू से जान माल की ज्यादा क्षति नहीं होने दी।

Free - Previous Years Question Papers
Any questions? Ask us!
×